गुजरात। नवरात्रि के दिनों में चल रहे गरबा कार्यक्रम में दलितो को नहीं जाने दिया तो गुजरात में दो परिवारों ने बौद्ध धर्म अपना लिया। अरावली जिले के खंबीसर गांव में सरपंच ने बताया था कि सभी हिंदू नवरात्रि का त्योहार मिलकर जुलकर मनाएंगे। लेकिन जब दलित परिवार के लोग गरबा के लिए गये तो उन्हें कहा गया कि आप शामिल नहीं हो सकते। जिसके बाद दलित परिवार के लोग निराश हो गए और उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। दलित परिवार के मुखिया ने कहा कि हिंदू धर्म में कई देवी देवताओं की पूजा होती है। यदि ये वास्तव में देवी-देवता होते तो हमें इस तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता। अब हमारा पूरा परिवार बौद्ध धर्म अपना रहा है।
जानकारी के अनुसार वहा के लोगों ने बताया की दलित परिवारों ने पड़ोस के साबरकांठा जिले का रूख किया और वहां पर जाकर बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए। उन्होंने बताया कि यह सब तब हुआ जब उनके पाटीदार बहुल गांव में गरबा समारोह रद्द कर दिया गया। हमने इस आयोजन में भाग लेने की इच्छा व्यक्त की थी। एक परिवार के मुखिया महेन्द्र राठौड़, उनकी पत्नी जागृति और दो साल की बेटी बौद्ध अपना लिया, इस पर उन्होंने कहा कि यह भेदभाव हिंदू धर्म में जाति-आधारित पदानुक्रम के कारण था। इसलिए, हमने हिंदू धर्म को त्यागने और बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला लिया है।
वहा पर रहने वाले पंकज राठौड़ ने भी अपने एक साल के बेटे और 4 साल की बेटी को बौद्ध धर्म की दीक्षा दिलाई। उन्होंने कहा कि हमने भारत रत्न बाबा साहेब अंबेडकर के रास्ते पर चलते हुए बौद्ध धर्म अपनाया है। उनका भी यही कहना था कि हमारे समुदाय की महिलाओं ने अपने मोहल्ले में गरबा किया। जिसका विरोध किया गया।
खंबिसार गांव में लगभग 2700 लोग रहते हैं। जिनमें से लगभग 2000 पाटीदार समुदाय से हैं। दलितों की आबादी लगभग 150 है। यहां 12 मई से पहले, गांव के किसी भी दलित ने अपनी शादी के जुलूस में घोड़े की सवारी नहीं की। पुलिस को अग्रिम सूचना देने के बाद जयेश राठौड़ की शोभायात्रा निकाली गई थी। हालांकि तब जुलूस में पत्थर फेंके गए गए और पंकज की बेटी सहित कई लोग घायल हो गए थे।
जानकारी के अनुसार वहा के लोगों ने बताया की दलित परिवारों ने पड़ोस के साबरकांठा जिले का रूख किया और वहां पर जाकर बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए। उन्होंने बताया कि यह सब तब हुआ जब उनके पाटीदार बहुल गांव में गरबा समारोह रद्द कर दिया गया। हमने इस आयोजन में भाग लेने की इच्छा व्यक्त की थी। एक परिवार के मुखिया महेन्द्र राठौड़, उनकी पत्नी जागृति और दो साल की बेटी बौद्ध अपना लिया, इस पर उन्होंने कहा कि यह भेदभाव हिंदू धर्म में जाति-आधारित पदानुक्रम के कारण था। इसलिए, हमने हिंदू धर्म को त्यागने और बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला लिया है।
वहा पर रहने वाले पंकज राठौड़ ने भी अपने एक साल के बेटे और 4 साल की बेटी को बौद्ध धर्म की दीक्षा दिलाई। उन्होंने कहा कि हमने भारत रत्न बाबा साहेब अंबेडकर के रास्ते पर चलते हुए बौद्ध धर्म अपनाया है। उनका भी यही कहना था कि हमारे समुदाय की महिलाओं ने अपने मोहल्ले में गरबा किया। जिसका विरोध किया गया।
खंबिसार गांव में लगभग 2700 लोग रहते हैं। जिनमें से लगभग 2000 पाटीदार समुदाय से हैं। दलितों की आबादी लगभग 150 है। यहां 12 मई से पहले, गांव के किसी भी दलित ने अपनी शादी के जुलूस में घोड़े की सवारी नहीं की। पुलिस को अग्रिम सूचना देने के बाद जयेश राठौड़ की शोभायात्रा निकाली गई थी। हालांकि तब जुलूस में पत्थर फेंके गए गए और पंकज की बेटी सहित कई लोग घायल हो गए थे।
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